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वगैरह अच्छी तरह साफ करनी चाहिए। स्नान के बाद तुरंत ही शरीरको अच्छे तौलिये (गमछ) से गैंछ कर निर्जल करना चाहिए। स्वजनादि की मृत्यु हुई हो तो मस्तक सहित सर्वाग स्नान करे। अन्था मस्तक के अतिरिक्त शरीर को धो ले। पुन्यवंत जीव किंचित उष्ण
और यथासंभव थोड़े परिमाण में जल लेकर देव पूजा के लिये स्नान करे। योगीश्वर का कथन है कि मस्तक निरंतर पवित्र है क्योंकि चन्द्र और सूर्य की किरणों के स्पर्श से समस्त जगत पवित्र होता है और जगत का आधार मस्तक माना गया है। जिन आचारोंमें जीव दया प्रधान है वे ही आचार धर्म के कारण हैं अतः नित्य मस्तक धोने से मस्तक के जीवोंका उपद्रव होनेसे अधर्म होतो है इसलिये नित्य मस्तक स्नान करना वर्जनीय है। मस्तक कभी भी अपवित्र नहीं होता है क्योंकि वह हर समय वस्त्र से ढका रहता है एवं निर्मल तेजवाली
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