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या पश वगैरह का संसग न हो इस तरह से उपयोग पूर्वक जिन-मन्दिर जाना चाहिये। स्नान करने की जगह जीवाकुल नहीं होनी तथा सचित्त मिट्टा वाली भी नहीं होना चाहिये तथा सूर्य का ताप (धूप) पहुंचे एवं जल सूख जाय ऐसी जगह चार पायेदार बाजीठ के
* स्नान करनेके समय निम्नलिखित श्लोक जो आचारोपदेश नामक ग्रन्थसे लिये गये हैं उस पर विशेष ध्यान देना चाहिये--
अथ स्वमन्दिरे यायाद्, द्वितीये प्रहरे सुधीः । निर्जन्तु भूवि पूर्वाशा भिमुखः स्नानमाचरेत ॥१॥ सप्रणालं चतुष्पाटं, स्नानाथं कारयेद्वरम् । तदुद्ध ते जले यस्माजन्तुर्वाधा न जायते ॥२॥ रजस्वलाया मलिन स्पर्शे जाते व सूतके । मृत स्वजन कार्ये च सर्वाङ्ग स्नान माचरेत ॥३॥ अन्यथा शीर्ष वर्ज व वपू रक्षालयेत्परम् । कवोष्णोनालपपयसा, देव पूजा कृते कृती ॥४॥ चन्द्रादित्य कर स्पर्शात्पवित्र जायते जगत् । तदाधारं शिरो नित्यं, पवित्रं योगिनो विदुः ॥५॥ दयासाराः सदाचारास्ते सर्वे धर्म हेतवे । शिरः प्रक्षालनान्नित्यं, तज्जीवोपद्रवो भवेत् ॥६॥
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