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( ७३ ) दर्शन पूजन सम्बन्धी वा परमात्मा के गुणों सम्बन्धी विचारों में लयलीन होकर चलनेवाले पुरुषोंके लिये है। मार्गमें कई तरहके व्यवसायों को करता हुआ, अनेक प्रकार की विकथाओं को करता हुआ या अनेक प्रकार के आरम्भ सपारंभ करने की आज्ञा देता हुआ जो जिनमन्दिर जाता है उसे इस फल की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती। प्रभातकाल में दर्शनार्थ जाने वालों के लिए सर्व स्नान की आवश्यकता नहीं है, परन्तु हाथ पैर वगैरह शरीरके अशुद्ध भागों को जल से शुद्ध करके जाना चाहिये। सन्ध्या काल में भी इसी तरह करना उचित है क्योंकि इन दोनों काल में प्रभुजी को अंग पूजा नहीं की जाती है अतः सर्व स्नान अनावश्यक है मध्यान्ह कालमें अष्ट प्रकारी पूजा की जाती है, इसलिए उस समय बन सके जहां तक अपने घर ही से स्नान करके ॐ शुद्ध होकर, शुद्ध वस्त्र पहिन कर मार्ग में अपवित्र वस्तु तथा मनुष्य
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