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जाती है और सायंकाल के दर्शन के समय धूप दीपादि से पूजा की जाती है। उपरोक्त तीनों अवसरों पर दर्शन पूजन के साथ २ चैत्यबंदने भादि भाव पूजा अवश्य करनी हो चाहिये क्योंकि द्रव्य-पूजा भाव-पूजा के ही निमित्त को जाती है। संसारी जीवोंको द्रव्य बिना भाव की उत्पत्ति हो नहीं सकती, इसी लिये द्रव्यपजन को आवश्यकता है। भाव-पजाका महत्व विशेष है कारण द्रव्य-पजा तो परिमित फलकी दाता है और भाव-पूजा अपरिमित फल दाता है।
दर्शन अथवा पूजन करने को जाते समय पांच अभिगमन और दशत्रिक साचवना जरूरी है। यह बात मुख्यरूपसे ध्यानमें रखनी चाहिये क्योंकि इसमें भक्ति के सभी प्रकारोंका समावेश हो जाता है। दर्शन करनेके निमित्त घरसे निकल कर मार्ग में चलते २ जो फल शास्त्रकारों ने बतलाया है वह केवल एकाग्रचित्त से
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