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भक्ति, बंदन, नमन, पूजन एवं स्तवनादि से होती है । परमात्मा की भक्ति कैसे करनी चाहिये ? यह चैत्यवंदन - भाष्यादि में बहुत अच्छी तरहसे वर्णित किया गया है, उसी के आधार यहां पर भी कुछ संक्षेपमें वर्णन किया जाता है ।
परमात्मा स्वयं तो इस समय विद्यमान नहीं है अतः उनकी भक्ति के लिए उनकी मूर्ति की भक्ति करनी चाहिये। उनका गुणानुवाद करना, तथा उनकी आज्ञा का यथाशक्ति पालन करना चाहिये इस तरह भक्ति तीन प्रकार से हो सकती है। भक्ति बहुमान में दर्शन पूजन का समावेश होता है। परमात्मा की मूर्ति जो इस आत्माको आत्महित साधनमें परम आलंबन भूत है, उसका तीनों ही काल दर्शन और तीनों ही काल पूजन के लिये शास्त्रमें विधान है । प्रातः काल दर्शन के समय वासक्षेप पूजा की जाती है, मध्यान्ह के दर्शन काल में अष्ट प्रकारी पूजा की
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