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ही नहीं जा सकता; क्योंकि जब तक असर्वज्ञपन रहा हुआ है तब तक सम्पूर्ण शुद्ध मार्गका कथन किया हो कैसे जा सकता है और खरा सर्वज्ञपन वीतराग दशामें ही प्राप्त हो सकता है, परमात्मा को भक्ति का यह दूसरा कारण है। तीसरा कारण यह है कि वे सर्वगुण-सम्पन्न हैं, अनन्त गुणों के स्वामी हैं, साथ ही सर्व दोषोंसे सर्वथा मुक्त हैं। ऐसे परमात्माकी भक्ति अपनी मात्मामें भी वैसेही गुण प्रगट करती है। गुणो की भक्ति, गुणशील बनाती है यह शास्त्र सिद्ध है। ये ३ कारण मुख्य है और भी परमात्मा की भक्ति के कई एक कारण है। अब यह स्पष्ट हो गया कि परमात्मा भक्ति करने के योग्य है
और भक्ति करना यह अपना अनिवार्य कर्तव्य है। अव भक्ति किस ढंगसे करनी चाहिए इसका विचार करते हैं।
ऊपर यह वर्णन किया जा चुका है कि परमात्मा की या किसी भी श्रेष्ठ गुणवान की
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