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की जाती। इससे प्रायः पोपट पाठ ( तोते की राम राम ) जैसा ही होता है। पूजा भणानेका फल परमात्माके गुणानुवाद से होनेवाली भाव पूजाके समान ही है किन्तु उसकी प्राप्ति अर्थ विचारणा के बिना नहीं हो सकती है। __(१७) पूजा पढ़ानेमें तथा चैत्यबंदनादि करने में कितने ही अर्थ के अज्ञान मनुष्य कभी २ यहां तक अशुद्ध बोल जाते है कि परमात्माकी स्तुति के बदले निन्दावाचक शब्दों का उच्चारण कर बैठते हैं। कोन स्तवन किस समय एवं किस जगह बोलना इसकी विचारना तो भला अथ शुन्य मनुष्य कर ही कैसे सकता है ? इसी लिये स्तवनादि के अर्थ का विचार करनेके लिये एवं समझने के लिए परिश्रम करना चाहिये और शुद्ध शब्दोच्चारण के साथ साथ अर्थ पर गहरा विचार करना चाहिए, जिससे आशातना न होकर भक्ति का फल मिलेगा।
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