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(१२) द्रव्य पूजा करनेके पश्चात भाव पूजा का अवसर आता है। द्रव्य पूजामें वहूत सा समय लगानेवाले भी भाव पूजा में बड़े मंद आदरवाले दीखते हैं। द्रव्य पूजासे भाव पूजा में अनन्त गुण अधिक फल कहा गया है। ऐसी हालतमें भावपूजाके प्रति अल्पदर का कारण सम्यक् भावको कमीका होना साफ जाहिर है। यह बात कभी नहीं भलनी चाहिए कि भाव-पूजा के प्रति दिन दिन अधिक आदर करना अत्यन्त आवश्यक है।
(१३) प्रसङ्ग से अङ्गी वगैरहके सम्बन्धमें होनेवाली आशातनाओं को भी जानना जरूरी है। अङ्गोमें अनेक दीपक जलाये जाते है, जिनकी गरमी अपने को भी असह्य मालम होती है तथा जिनसे चौमासे के दिनोंमें जीव विराधना भी ज्यादा होती है। कितने ही समय दीपक उघाड़ा (खुला) ही रख दिया जाता है जिससे कोई कम विराधना नहीं होती। ऐसा
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