________________
( ६१ ) सु, जे पूजे जिनराय" पर स्वयं जिन चावलोंसे स्वस्तिक (साथिया) करते हैं, वे चावल कैसे हैं, इस पर कोई ध्यान नहीं देता है। कितने ही समय तो इन चावलों में धनेरिया ( इल्ली) बावां ( लट) वगैरह जन्तु भी देखने में आते हैं, जिनकी बिराधना हो जाती है। फल भी साधारण, एवं नैवेद्य की जगह मिश्रीके टुकड़ या पतासे जैसी मामूली चीज चढ़ाई जाती है । खैर, हर रोज के लिए तो कोई बात नहीं मगर पर्व के अवसर पर या अपने घर में विवाह लग्नादि के समय जब काफी मिठाई रहती है या किसी मित्र या अतिथि के लिए मिष्टान्न की तैयारी होती हैं उस समय जिनेश्वर की भक्ति का कभी स्मरण ही नहीं होता और न वे वस्तुएं कभी चढ़ाई जाती है। फल भी उत्तम जाति के नहीं होते यह जिन-पूजा के प्रति अल्पादर स्पष्ट जाहिर होता है ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org