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( ५६ ) (E) पुष्प-पूजा के अनन्तर धूप एवं दीपपूजा की जाती है इसका नाम अग्र-पूजा है। असल में तो अग्र पूजा गर्भ गृह (गंभारा ) के वाहर रह कर ही करनी चाहिये परन्तु आज कल तो गर्भ गृहके अन्दर ही सर्वत्र करते नजर आते हैं, इतना ही नहीं पर धूपको प्रभुजी के मुख तक ले जाते हैं। अज्ञान जा करने वाले अगरवत्ती के टुकड़े को धूपदान में बिना रखे ही उसको प्रभुजी के इतना निकट ले जाते हैं। कि उसकी राख या वह टुकड़ा प्रभुजीके शरीर पर गिर जाता है। इस अज्ञानता को दूर करने की पूरी जरूरत है क्योंकि ऐसा करने से भक्ति के वजाय महान आशातना होती है। मन्दिर जोको दीवारों पर कोयलेसे अपने नाम अंकित करनेवाले अज्ञानी पुरुष जितना नुकसान करते हैं उससे भी ज्यादा नुकसान वे करते हैं जो गर्भगृहके तमाम भागोंको, धूपदीप करके काला कर देते है। इस पर हर व्यक्ति को पूरा ध्यान
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