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और कदाचित किसी खुणो खोचरे स्थानमें वासी केशर लगी हुई रह भी जाय, तो उससे इतनी बड़ी आशातना नहीं होती जितनी बालकुंचो से जिनबिम्ब को रगड़ने में होती है। फिर इससे भी अधिक ध्यान इस बात पर देना चाहिये कि जिनबिम्ब पर जल की बंद नहीं रह जाय जिससे लीलन फलन पैदा होनेकी एवं मेल जम जाने की सम्भावना रहती है। अंगलुहणा करते समय इतनी जल्दी की जाती है कि खुणे खोचरे की न तो सम्भाल ही लो जाती है और न उस पर कोई दृष्टि ही डाली जाती है। इसी लिये आवश्यक्ता इस बात की है कि इन सब बातों पर विशेष उपयोग रखा जावे और बालकंची का उपयोग अत्यावश्यक होने पर ही किया जावे। जो लोग इन बातों पर ध्यान नहीं देते वे पूजारियों (गोठीलोगों) से होनेवाली समस्त आशातनाओंके हिस्सेदार होते है, यह उनको कभी नहीं भूलना चाहिये।
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