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पर यह बालकुची तो सुगन्धी खसके बालोंकी होनेसे अत्यन्त कर्कश होती है, जिसके लिये अभी तक कोई सुधार नहीं हुआ है। ऐनी कर्कश बालकुंची से प्रभुजी के समस्त शरीरको घसना, रगड़ना एक प्रकारकी महान आशातना है; अतः बन सके वहां तक वालकुंची का प्रयोग सर्वथा करना ही नहीं चाहिये। कदाचित जिनबिम्बके किसी भागमें खड्डा पड़ गया हो और उसमें की केशर न निकलती हो तो ऐपी हालतमें केवल ढोले हाथोंसे बालकुंचीका सहज मात्र ही उपयोग करना चाहिये। वालकंचीका सतत् एवं निरंतर प्रयोग करनेसे जिनबिम्ब पर कितनो घसीटें लग जाती है यह प्रभु के शरीरके कितने ही स्थलोंपर, पलांठो (पालखो) के ऊपर के लेख पर, धातु विम्ब की मुख व नासिकादि पर, या सिद्धचक्र जीके अंगोपांगादि पर दृष्टि डालनेसे प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती हैं। बालकुंची को सर्वथा उपयोग हो न किया जाय,
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