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(३) श्रीजिनेश्वर भगवान की द्रव्य-पूजाका प्रारम्भ जल पूजासे होता है और वह जल पूजा जिस समय दो घड़ीके लग भा दिन चढ़ जाय, सूर्यका प्रकाश आने लग जाय, रात्रिमें आये हुये जीव जन्तु स्थानान्तर हो जाय और यदि कोई जीव वहीं रह भी गया हो तो वह अच्छी तरह दृष्टि गोचर होने लग जाय एवं मोर पीछी (मयूरपंख) द्वारा हटाया जा सकता हो ऐसे अवसर पर तो जलपूजा करना योग्य है अन्यथा कितने ही स्थानोंमें अनेक समय यहां तक देखने में आया है कि उपरोक्त जयणाको आचरित किए बिनाही जलपूजा (प्रक्षालन ) कर डालते हैं जिससे जीव दयाका आवश्यक कर्तव्य होता नहीं है और तिर्थङ्कर की आज्ञाका भङ्ग होता है। यहभी एक प्रकार का पोशातना हो है। यहां यह खास ध्य.नमें रखना जरूरी है कि अष्टप्रकारी पूजा कसे का मुख्य समय हो दूजा प्रहर बतलाया गया है।
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