________________
(४६)
(२) स्नान करनेके पश्चात पहिनने की कम्बली तथा उसके बाद पूजा के समय पहिनने के वस्त्र इतने मेले, गन्दे, दुर्गन्धि पूर्ण और फटे हुए होते हैं कि जिसके लिये अच्छी स्थिति वाले श्रावकों को लजित होना चाहिये क्योंकि वे भी कदाचित्त १ सालमें १ बार पूजाका वस्त्र बदलते होंगे। वे कभी यह विचार नहीं करते कि अगर हम लोग ऐसे हो वस्त्र रखेंगे तो बिचारे साधारण स्थिति वाले कैसा बस्त्र रखेंगे ? अपने घर के पूजाके बस्त्र कदाचित्त ही कोई रखता हो और यदि किसी के अपने घरके ही होंगे तो उसे स्वच्छ रखने की ओर ध्यान नहीं नहीं दिया जाता। इससे निजके शरीर को नुकसान पहुंचता ही है और परमात्मा के प्रति अनादर सूचित होता है और इसीसे प्रभुके प्रति भक्ति में कमी जाहिर होती है ।
अतः
यह भी एक अशातना ही है ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org