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________________ ( ४८ ) १ सर्व प्रथम तो श्रावकके वास्ते सिर्फ जिनपूजा ही के निमित्त हर रोज स्नान करनेका कहा गया है, अन्यथा प्रति दिन स्नान करना निषेध है । जिनपूजाके हेतु जो स्नान कराना है, वहभो परिमित ( मापा हुआ ) जलसे और इस रीति से कि जिससे लीलन फूलनकी व त्रस जीवोंको विराधना न हो, यतना ( जयणा ) पूर्बक नहाना चाहिये । किन्तु इसके विपरीत बहुत जगह या बंबई जैसे बड़े शहरोंमें तथा और भी कई स्थानों में लोग इस तरह नहाते हैं कि जहां जयगा बिकुल नहीं पाली जाती, जलका कोई परिमाण नहीं रखा जाता और अनन्त काय ( लीलन फूलन ) के अनन्त जीवों की विराधना तथा त्रस ( चलते फिरते ) जीवों की भी विराधना होती है । ऐसा होने से प्रारंभ में ही श्रीजिनेश्वर भगवान की आज्ञा का भंग होता है और यह भी एक प्रकार की आशातना ही है । For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003826
Book TitleJinraj Bhakti Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanmal Shankardan Nahta
PublisherDanmal Shankardan Nahta
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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