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( ४७ ) 'जिनराज-भक्तिके प्रति होनेवाली आशातनायें"
(लेखक- श्रीकुवरजी आणंदजी-भावनगर ) इस विषय पर विचार करना बहुत जरूरी है। उत्तम और भव भी प्राणी वग इन आशातनाओं से बहुत डरते रहते हैं किन्तु कुछ तो इस विषय पर दार्घ विचार नहीं करनेसे, कुछ उपेक्षा भावके रहनेसे, कुछ बोधकी मन्दता से
और कुछ इस विचारको जागृत करनेवालों की कमोसे, जिनराज भक्ति करने की इच्छा रहते हुये भी, जिन पूजादि धर्म क्रिया करते समय, प्राणोवर्ग जिनेश्वर देवकी आज्ञा भंगरूप यह तथा ऐसी हो अन्य अन्य आशातनायें करते रहते हैं जिनके विषय में यथासाध्य नीचे वर्णन किया जाता है । आशा है बुद्धिमान लोग इस पर विचार करके जो बातें ठीक मालम हों उसे सत्वर स्वीकार करके वर्तन में लावेंगे।
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