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भावना के दोहे :
त्रिजग नायकतुंधणी महा महोटा महाराज । मोटे पुन्ये पामिया, तुम दरशणहु आज ॥१॥ आज मनोरथ सबि फल्या, प्रगटयां पुण्य कल्लोल पाप करम दूरे टल्या, नाठा सर्व दंदोल ॥२॥ सुखदाई प्रभु तुबड़ो, तुज सम अवर न कोय । करम मल दूरे कर्या पाम्या शिवपद सोय ॥३॥ शानावरणी क्षयकरी, दर्शना बरणीय कर्म । घेदनोय कर्म दूरे, टाल्यु मोहनीय कर्म ॥४॥ नाम कर्म ने आयु कर्म, गोत्र अने अन्तराय । अष्ट कर्म एणी परे, दूर कर्या महाराय ॥५॥ दोष अठारह क्षय गथा, प्रगटया पुण्य अनन्त । अन्तरंग सुख भोगवे, निश्चल श्रीअरिहंत ॥ ६ ॥ कल्पवृक्षने कामकुम, पूरे मन ना कोड़। प्रभु सेवा थी ते मले, जो मंछा (श्रद्धा) होय भड़ोल ॥७॥ प्रण भुवन में तुबड़ो, तुज सम अवर न कोय। इन्द्र चन्द्रने चक्रवती; तुज पद सेवे सोय ॥ ८॥ प्रभु सेवा भावे करे प्रमधरी मनरंग। दुःख दोहग दूरे टले, पाये सुख मन चंग॥ ॥ पूजा करता प्राणिया, पोते पूजनीय होय । आभव परभव सुख घणा; तस तोले नवि कोय ॥१०॥ जीवड़ा जिनवर पूजिये, जिन पूज्या सुखथाय । दुख दोहग दूरे टले, मन बञ्चित फल पाये ॥११॥ द्रव्यभाव थी अति घणो, हैडै हरष न माय । इन विध जिनवर पूजनाँ, पापकरम दूरे जाय ॥१२॥
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