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________________ ( ४५ ) पर न छोड़ें जैनी भाइयों को स्वयं अपने हाथसे करना चाहिये अन्यथा बड़ी आशातनायें होती है सम्यक्त्व विचार | सुदेव, सुगुरु और सुधर्म पर श्रद्धा रखने को सम्यक्त्र कहते हैं :— १ सुदेव:- श्री अरिहन्त सर्वज्ञ १२ गुण सहित और रागद्वेषादि १८ दूषण रहित वही सुदेव है । २ सुगुरुः - पंच महाव्रत के धारक कनककामिनो सर्वथा त्यागी सर्वज्ञ प्रणीत धर्मके उपदेशक हों वे सुगुरु हैं । ३ सुधर्म :- अनेकान्त स्योद्वादमय केवली भगवान भाषित, दयामय सर्व जीवको हित कारक सुधर्म है । उपरोक्त तत्वत्रय की श्रद्धाको सम्यक दर्शन कहते है सो धारणे योग्य है । इससे विपरीत कुदेव, कुगुरु और धर्म के ऊपर श्रद्धा को मिथ्यात्व कहते हैं वह त्याज्य है । सभ्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र ही मोक्षका मार्ग है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003826
Book TitleJinraj Bhakti Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanmal Shankardan Nahta
PublisherDanmal Shankardan Nahta
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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