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मिलता है कि प्रथम सेवक (सेवाधर्म अनुयायी) बने बिना स्वामी पद नहीं मिलता। इसलिये सेवा धर्म स्वीकार । यह भावना पैरोंकी (अंगूठे की) पूजा करते समय मानी चाहिये ।
(ख) जानु घुटना ) यह समाधि भूमिका है, दिक्षा के अनन्तर प्रायः प्रभुजीने खड़े २ काउ सग्ग किया है इससे ध्यानावस्था को चिन्तवन स्मरण करनेके लिये जानुयोंकी पूजा करता हूँ।
(ग) हे निष्कारण उपगारी ! दीक्षा के पूर्व १ वर्ष पर्यंत आपने इन हाथोंसे दान दिया । केवल ज्ञान पानेके अनंतर अनेक जीवोंको दोचित किया इससे इन दो हाथों की भावसे पूजा करता हूँ ।
(घ) हे गुणेश । जिस तरह समुद्रको भुजा ! के बलसे तरा जाता है वैसे ही आपने इन अनंत शक्तिवाली भुजाओं से संसार समुद्र को पार किया, याने तर गये इसलिये, भुजाओं को पजा करता हूँ ।
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