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( ३० ) (ङ) हे कैवलज्ञानी ! मस्तक जैसे ऊंचा होता है वैसे ऊंचगतिको आप प्राप्त भये है इस लिये मस्तक की पजा करता है।
(च) हे तोर्थेश। आपने अनेक परिषह सहनकर कर्म शत्रुओंको हटाकर लोकमें तिलक के समान बने। तिलक करनेका स्थान ललाट है इसलिये ललाट की पूजा करता है। __ (छ) हे निर्विकार ! आपके यह कंठ महान उपगारो है। इसी कंठसे आपने अनेकान्त सत्य धर्म का उपदेश देकर अनेक जीवोंका उद्धार किया आज भी आपको वाणी परम आधार भूत है इसलिये आपके कंठकी पूजा करता हूँ।
(ज) हे सर्वज्ञदेव । आपने इस हृदय से किसीका भी बुरा चिन्तवन न किया, सब जीवों का उद्धार होकर सन्मार्ग में पड़े ऐसी उच्च भावनासे उपदेश दिया। इस उदार हृदय की भावस्से में पूजा करता हूं।
(झ) आपके अनन्त गुणोंका कोई वर्णन
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