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( २८ ) (छ) नैवेद्य पूजाः- हे प्रभो आप निर्वेदी और अनाहारी हैं। नैवेद्य आपके सन्मुख रखता हूं इससे अनाहारी पद मुझे भी मिले । ___(ज) फल पूजाः- हे प्रभो आपके सामने ये फल चढ़ाता हूँ मुझे मोक्ष रूप फल की प्राप्ति हो यह भावना भाता हूँ। इस प्रकार अष्ट प्रकारके पजनसे मेरे अष्ट कर्म नष्ट होवें। ॥ नव अंग पूजा समयको भावना ॥
५ चंदन पूजा नव अंगोपर होती है उस समय इस प्रकार की भावना भावेः___ (क) तीर्थकर देवने पगोंसे अनेक देशों विदेशों बिचरकर अनेक भव्यजीवोंको प्रतिबोध दिया, हे आत्मन् ! वैसे तूं भी पगके सहायसे प्रचार, तीर्थयात्रा आदि शुभकार्य कर। सर्व धर्म शरीरमें सेवक का काम करते हैं प्रभुने भो सेवा धर्मको स्वीकारा है याने जोवोंको तारने के लिये अनेक देश विचरे हैं इससे यह उपदेश
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