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( २७ )
दूर होकर शुभ भावना प्रगट होवो और जैसे इस धूप का धुवां ऊंचा जाता है वैसे ही मैं उद्ध गति रूप, मोक्षको पांऊ ।
(ङ) दीपक पूजा :- आप सर्वज्ञ हैं मुझे भी आत्म ज्ञान रूप प्रकाश को प्राप्ति हो ।
(च) अक्षत पजा स्वस्तिक के किनारे रुप चार गति का भव भ्रमण मिटे. ऊपर तीन ढगली रूप ज्ञान दर्शन चारित्र प्राप्त हो, जिससे सिद्ध शिलाके ऊपर मोक्षमें वास हो ऐसा भाव सूचित करना चाहिये । इस प्रकार के दोहे भी बोले
:
करतां अक्षत पूजना, सफल करू अवतार । अ-क्षत फल मांगु प्रभु तार तार मुझतार ॥ १ ॥ संसारिक फल मांगके, रबड्यों बहु संसार । अष्ट कर्म निवारवा, मांगु मोक्ष फल सार ॥ २ ॥ चिहुंगति भ्रमण संसार मां, जन्म मरण जंजाल । पंचम गति बिन जोव ने, सुख नहीं त्रिण काल ॥ ३ ॥ दर्शन ज्ञान चारित्र ना आराधन थी सार । सिद्ध शिला ने ऊपर, हो वासा श्री कार ॥ ४ ॥ अक्षत फलकी (अखंडित) याचना रूप यह
अक्षत पूजा करता हूं ।
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