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( २४ ) धन स्त्री पुत्र आदिका तथा रोग द्वषादि विभावोंका स्मरण न करे यह मन शुद्धि है।
(ख) पापकारो सावध भाषाका त्याग वचन शुद्धि है। याने मन्दिरमें सत्य प्रिय और बोलने योग्य ही भाषा बोले।
(ग) शरीर से पाप व्यापार न करे हाथ और दृष्टि से भी इशारा न करे, स्नानादिक से शुद्ध होवे यह काय शुद्धि है।
(घ) वस्त्र कटा हुआ तथा जिसको पहिने हुए मल मूत्र मैथुनादि सेवन किया होवे, जला हुआ, छिद्रित, सिलाइ किया और कोई भी रंगवाला वस्त्र न पहनना यह वस्त्र शुद्धि है। याने पूजाके वस्त्र अलग हो रखने चाहिये जो कि नये और श्वेत रंगके हों। ___ (ङ) भूमिको श्लेस्मादि अशुचि पुद्गल रहित करना भूमि शुद्धि है।
(च) पूजन के उपयोगमें आनेवाले उपकरण लोटा, रकाबी, कलश, धोकर मांजकर
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