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( २३ ) चाहिये । भाव चिन्ह राग द्वेष का त्याग रूप है इसके यथासाध्य मंदिरमें तो (हर समय भी रखने योग्य ही है ) अवश्य राग द्वष के त्याग रूप भाव चिन्ह को रखना चाहिये इसीमें पूजा की सार्थकता है कहा भी है :जिन स्वरूप था जिन आराधे, ते सही जिनवर होवे । भृगी इलीका ने चटकावे, ते भृगी जगजोवे रे ॥७॥
(आनन्दघनजी कृत नमिनाथ स्तवन) भावार्थ यह है कि:-जिन, याने राग द्वष से रहित होके जो जिनेश्वर की आराधना करता है वह जिनेश्वर के सदृश वन जातो है। जैसे:-भ्रमरी ईलीको डंक मारती है उस ईलीको भ्रमरी रूपमें सब जगत देखता है। (इसका विस्तार से अर्थ आनन्दधनजी के चोवीसी पर ज्ञान विमलसूरि और ज्ञानसारजी के टबेसे जानना चाहिये) _____२ पूजन करनेवाला सात प्रकार की शुद्धि करे। वे ये है :___ (क) घर अथवा दुकानादि व्यापार एवं
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