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( २२ ) उलटा तुमारा ही गला पकड़ती है। जैसे गायके आकार को देख उसका स्मरण और ज्ञान होता है वैसे ही परमात्मा का भी समझना चाहिये।
विशेष ज्ञातव्य। इसी ग्रन्थमें इस लेखके पश्चात ३ लेख और हैं उनके लेखक महाशयों ने जिनेश्वर की भक्ति की विधि, आशातनाएं और उनके निराकरण
आदि पर अच्छा प्रकाश डाला है जो कि पाठक आगे पढ़ेगें उन लेखोंमें विशेष ज्ञातव्य
और आवश्यकीय विषय जो रह गये है वे नीचे लिखे जाते है।
१ स्नान करनेके पश्चात श्रावकको अपने द्रव्य को केशर से १ मस्तक २ ललाट ३ कंठ ४ और हृदय इन चार स्थानों पर तिलक करना चाहिये। ललाट में तिलक करना यह जैनियों का चिन्ह है यह चिन्ह द्रव्यसे जोनना
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