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( १८ ) भी देखियेः--साधु विहार करते हैं, मल मूत्रादि निहार करते हैं और भी कई कार्योंमें हिंसा तो होती है तथापि वह सब कार्य करने की आज्ञा दी है तो इससे यह तो अच्छी तरह जाना जाता है कि जिनेन्द्र कथन एकान्त नहीं है तथा प्रश्नव्याकरण सूत्रमें पूजा को दया में गिनी है इससे इसका फल पुण्य और निर्जरा है। अध्यवसायों को निर्मलता के कारण पाप का बन्ध नहीं हो सकता। द्रव्य पजामें हिंसा करनेवाले भी तो अपने गुरु आदि को वन्दनार्थ हजारों माइल जाते हैं क्या उसमें हिंसा नहीं है ? तथापि परणाम की शुद्धता के कारण वे कार्य लाभदायक और कर्त्तव्यरूप समझे जाते हैं। युक्ति से भी यही सिद्ध होता है :-एक मनुष्य धन कमानेको विदेश गया उसको टिकट खर्च आदि लगता है, और जब वहां से वह धन कमाके लाता है तो आते समय भी खर्च लगता है, तो भी उसे सभी लोग धन कमाके
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