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माहतणी सुदी अष्टमी, शुभ मुहूर्त विचार । ' ए लिपि प्रतिमा पूठे लिखि, ते वांचि सुविचार || मूल नायक प्रतिमा वलि, सकल सुकोमल देहो जी । प्रतिमा श्वेत सोनातणी, मोटो अचरज एहो जी ॥ १ ॥ अर्जुन पार्श्व जुहारियै, अर्जुन पुरि सिणगारोजी । तीर्थकर तेवीसमो, मुक्तितणों दातारो जी ॥२॥ चन्द्रगुप्त राजाथयो, चाणक्यै दीधोराजो जी | तिण ए बिम्ब भराबियो, साला आतम काजो जी ||३|| महावीर संवत थकी, वरस सत्तर सो (१७०) बीतोजी । तिण समय चवदह पूर्व धरू. श्रुतकेवली सुविदीतोजी ॥४॥ भद्रबाहु स्वामी थया, तिण कीधी प्रतिष्ठो जी । आज सफल दिन मांहरो, ते प्रतिमा मैं दीठो जी ॥५॥
इस स्तवन से जो २ प्रतिमाए निकली थी उनकी प्राचीनता स्वयं सिद्ध हो जाती है । और भी अनेक स्थलो में भूमि भाग से "जिन प्रतिमाऐ" निकली है और अभी निकल रही हैं उनसे स्पष्ट जाना जाता है कि पूर्व समयमें जैन संघ में " जिन प्रतिमा का पूजन होता था और वे मन्दिरोंमें प्रतिष्टित की जाती थी ।
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