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मनुष्य हृदय पर भक्ति-भावों का भाविर्भाव अवश्य होता है।
(३) आगम ग्रन्थोंमें उल्लेख है कि समुद्रोंमें "चूड़ी" और "केलू” इन दो आकारों के अतिरिक्त सब ही आकारोंवाले मत्स्य होते हैं। उन मत्स्योंमें "जिन-प्रतिमा” ऐसे आकार वाले बहुतसे मच्छ, मत्स्यादिक होते हैं। देश-विरतिया सर्व विरति-धर्म की विराधना कर, मृत्यु पाकर, मत्स्य योनीमें उत्पन्न हुआ मत्स्य, उस “जिनप्रतिमा" के आकार वाले मत्स्य को देखकर, विचार करता है कि "मैने ऐसा आकार कहीं अन्यत्र भी देखा है”। विचार करते हुए, मूर्च्छित होकर उसे जांति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो जाता है। अपना पूर्व भव देखकर उसे बोध प्राप्त होता है और मृत्यु पर्यन्त अच्छी भावनों द्वारा
आत्म कल्याण करता है। अब भला! जब मत्स्यादि तिर्यंच जीवोंको भी "जिन प्रतिमा आकार" को देखकर आत्म कल्याण करनेका
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