________________
( ४ ) (२) किसी भी पदार्थ का स्वरूप समझाने के लिए उसका चित्र बहुत ही उपयोगी होता है जैसे भारतवर्ष को जानने के लिए भारतवष का नक्शा । बहुत समझाने पर भी जिस विषय का अपने को वोध नहीं होता या बड़ी कठिनता से बोध होता है उसी विषयके चित्र द्वारा उसको समझाने पर उसका ज्ञान बहुत सुगमतासे प्राप्त हो सकता है। इसी प्रकार परमात्म-स्वरूप के समझने के लिए उसकी मूर्ति की नितान्त आवश्यकता रहती है। जिनेश्वरके दर्शन मात्र से उनका स्मरण होकर अपने मन में उनके गुण, कार्य और उनका पवित्र जीवन-चरित्र शीघ्र ही स्मरण हो जाता है। इसी लिए उनके स्मरण करने में उनकी मूर्तिकी बड़ी आवश्यकता होती है।
(३) बिना अनुराग (प्रेम ) के किसी भी गुण की प्राप्ति नहीं हो सकती। जैसे किसी मनुष्य को संस्कृत का विद्वान बनने की इच्छा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org