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मूर्तियों (खोद कामसे बाहर प्रकाशित हुवे साधनों ) और प्राचीन धर्म शास्त्रों द्वारा मूर्तिपूजा की प्राचीनता भली भांति प्रमाणित होती है । पहिले मैं मूर्ति पूजा की आवश्यकता को दिखला कर, कुछ प्रमाणों द्वारा मूर्ति पूजा की रीति प्राचीन काल से चली आती है ऐसा सिद्ध करके उसकी आवश्यकता, उपकारिता और लाभजन्यता को दिखाने का प्रयत्न करता हूं। आशा है कि, गुणानुरागी पाठकगण ध्यानपूर्वक पढ़ कर सत्यार्थ तत्व ग्रहण कर अपनी आत्मा को साधकता के पथ पर आकृष्ट करेंगे |
१) संसारी जीव संसार के मायाजाल में फंसे हुए हैं। उनकी आत्मिक और मानसिक शक्तियां इतनी विकशित नहीं है, कि वे परमात्मा के चित्र या मूर्ति के बिना सुचारुरूप से उनका ध्यान कर सकें । परमात्मा का ध्यान और स्मरण करनेके लिये मूर्ति की बड़ी आवश्यकता रहती है ।
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