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हो तो उसे प्रथम संस्कृत भाषाका प्रेम होना चाहिए तथा साथ ही साथ संस्कृत के विद्वानों के साथ प्रेम व अध्ययन करने की भी बहुत
ओवश्यकता होती है। उसी तरह जिसे परमात्म-खरूप समझने की उत्कंठा हो उसे परमात्मा के गुणों और परमात्मा के प्रति प्रेम होना बहुत ही जरूरी है। ___ (४) जो वस्तु जगतमें दृष्टिगोचर होती है उसका कुछ न कुछ अपने हृदय पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। जैसे सत्संग व कुसंगका। सुन्दर स्त्री का चित्र देखने से उसके लावण्यादि गुणों पर मन आकर्षित होकर विकारावस्था को भी प्राप्त हो जाता है तदनुसार एक शान्तिमूर्ति तपस्वी, साधु, महात्मा का चित्र देखकर हृदयमें एक अपर्व शान्ति व भक्ति, त्याग इत्यादिक गुणों की वेगवती भाव धारा बहने लगती है। इसी लिए मूर्तिकी महत्ता व आवश्यकता स्वयं सिद्ध है।
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