________________
( ८१ )
चाहे प्रतापसी, चाहे कुल मार्ग को लजा कर, दूसरे ठाकुर चन्द, सूर्य और भी चाहे विधि आदि भी अल्लाउद्दीन से जा मिलें तो भी यह उससे सन्धि न करेगा। ग्यारहवें कवित्त में दिगदिगन्त से भाई मुसलमान सेना और हम्मीर के प्रसन्न होकर उसका सामना करने का वर्णन है । बारहवें कवित्त में उड्डाणसिंह के हाथ नर्तकी धारू की मृत्यु का उल्लेख है । तेरहवें वित्त में मोमूसाह ( मुहम्मदशाह ) हम्मीर से बीड़ा लेकर अलाउद्दीन का छत्र काट डालता है ।
चौदहवें कवित्त में यह वर्णित है कि आठ लाख औषधियों के चूर्ण ( पाउडर ) को प्रयुक्त कर अलाउद्दीन ने जब नाल ( तोप ? ) चलाई तो रणथंभ की दीवार एक ओर से टूट गई। फिर भी ( कवित्त १५ ) हम्मीर ने देवगिरि के राजा की तरह कायर होकर किला न छोड़ा । उसने बढ़ती मुसलमान सेना पर अच्छी चोट की ।
'राज पलट जाता है, दिन पलट जाते हैं, किन्तु बड़े आदमियों के वचन नहीं पलटते', यह कहते हुए हम्मीर ने जाजा से चले जाने को कहा । वह तो 'परदेसी पाहुना था' । किन्तु जाजा ने ऐसे आचार को दोगली संतान के लिए ही उपयुक्त बताकर गढ़ छोड़ने से इन्कार कर दिया (दोहा १-३ ) । और अलाउद्दीन की सेना पर आक्रमण कर घोर युद्ध करता हुआ काम आया । ( कवित्त १६ - १७) आगे के दो कवित्तों में युद्ध का वर्णन है । मीर भी अन्य स्वामिभक्तों के साथ युद्ध में काम आए। ( १८-१९ ) श्रावण की पंचमी, शनिवार के दिन सम्वत् "अगणमै " में हम्मीर युद्ध करता हुआ काम आया । रणमल शत्रु से जा मिला (२० ) । बारह वर्ष तक युद्ध चला । अलाउद्दीन के ग्यारह लाख सैनिकों में से केवल एक लाख बचे ( कवित्त २१ ) |
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org