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आरी सीरा तोरण ( १३५) उत्सव के समय तोरण खड़े करने की परिपाटी चिरकाल से भारत में चली आई है । अन्य ग्रन्थों में तलिया तोरण का वर्णन है। आरीसारी तोरण भी सम्भवतः तलिया तोरण
पवाडउ (२१०, २६३)-पवाड़ा शब्द के मूलार्थ के विषय में पर्याप्त मतभेद है । मरुमारती, वर्ष, अङ्क में हमने इसका प्राचीन अर्थ 'युद्ध' या ऐसा ही कोई वीरकार्य मानने का सुझाव दिया है। हम्मीरायण सोलहवीं शताब्दी की कृति है। किन्तु इसमें मी पवाड़उ के उसी प्राचीन अर्थ की झलक है । २९३ वीं चउपई इस प्रकार है:
राय पवाडउ कीयउ मलउ, आपण ही सार्यउ जै गलउ ॥ ( राजा ने अच्छा 'पवाड़ा' किया। उसने अपने आप ही अपना गला काटा)
पवाड़े के युद्ध या युद्ध के सन्निकट अर्थ को ध्यान में रखते हुए हमने उसे 'प्रपातक' से व्युत्पन्न करने का भी सुझाव दिया था। किन्तु 'प्रवाद' शब्द भी लगातार इमारे ध्यान में रहा है। प्रवाद से मिलताजुलता शब्द 'भट्टवाद' (वीरत्व की ख्याति ) प्राचीन राजस्थानी और गुजराती में प्रचलित रहा है, जिसका अपभ्रष्ट रूप मडवाउ अनेक ग्रन्थों में मिलता है। 'भडवाडउ' शब्द की भी गवेषणा की; किन्तु उसकी कहीं प्राप्ति न हुई।
जमहर-इसके लिये आजकल जौहर शब्द प्रचलित हो चुका है। डा. वसुदेवशरण जी अग्रवाल ने जौहर को अतुगृह से व्युत्पन्न माना जो माषाशास्त्र की दृष्टि से सर्वथा ठीक है (जतुगृह 2 जउगृह / जउघर /
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