SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६ ) इस उद्धरण में भाट की वेश-भूषा, विद्या, व्यवहारादि समीका वर्णन है । उसके बहुमूल्य वस्त्र, भाभूषण और आयुध उच्चपद के अनुरूप है । उसका शास्त्रीय ज्ञान इतना प्रगाढ़ है कि बड़े बड़े पण्डितों और कवियों के ज्ञान को मात करता है। वह सर्वभाषाविज्ञ, अष्टव्याकरण पारग, अष्टादश कोष व्युत्पन्न, अनेक अलङ्कार विज्ञ, एवं बहुत ग्रन्थ कृताभ्यास है । वह कवि भी है और दाता भी । अनेक व्यक्ति उसके पीछे पीछे चलते हैं । अर्वाचीन भाटों से परिचित व्यक्ति मध्यकालीन भाटों के महत्त्व को कठिनता से ही समझ पाते हैं । किन्तु वर्णरत्नाकर का वर्णन पढ़ने वाला व्यक्ति आसानी से ही चन्द, मोल्हण ( कान्हड़ दे प्रबन्ध ), मोल्हा और नाल्ह ( हम्मीरायण ) आदि के व्यक्तित्व और प्रभाव को समझ सकता है । पृथ्वीराज विजय का पृथ्वीभट भी इसी श्रेणी का है । हम्मीरायण के कुछ शब्द * हम्मीरायण के ३२६ छन्दों में पर्याप्त अध्येय सामग्री है। किन्तु हम उनमें से कुछ ऐसे ही शब्दों पर यहां विचार करेंगे जिनका अर्थ या तो विवादग्रस्त है या जिनके अर्थ पर विवाद की संभावना है । ऊलग, ऊलगाणा- इन शब्दों का इस काव्य में अनेकशः प्रयोग है । विशेषतः ( सैनिक ) सेवा के अर्थ में अलग शब्द का प्रयोग हुआ है । ''ऊलगाणा' ऊलंग करने वाले के लिए प्रयुक्त है । हम्मीर की अनेक मोडोधा धणी ( मुकुटधर सरदार ) ऊलग करते थे ( १९,२८९ ) महिमासाहि और उसका भाई अलुखान को उलगते थे ( ४४,४५ ) 'उलगाणा' शब्द ३३वें पद्य में इन्हीं दोनों भाइयों के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy