________________
( ६८ )
1 PR
के पर जे तिङ्ग बानी । लोहाक निर्म्म उलि सोनाक डोर छुरी एक बाम कइ बन्धने । पुनु कइसन माट, संस्कृत, प्राकृत, अवढ्ठ, पैशाची, सौरसेनी, मागधी कहु भाषाक तत्वज्ञ, शकारी, अमिरी, चाण्डाली, सावली, दाविली, औतकलि, विजातीया ॥ सातहु उपभाषाक कुशलह । पानिनि · चन्द्र, कलाप, दामोदर, अर्द्धमान, माहेन्द्र, माहेश, सारस्वत, प्रभृति ये आठओं व्याकरण ताक पारग । धरणि, विश्व, व्यालि, अमर, नामलिङ्ग अजयपार, शाश्वत, रुद्रट, उत्पलिनी, मेदिनीकर, हारावली प्रभृति अठारह: ओकोषतं न्युत्पन्न । ध्वनि, वामन, दण्डी, महिमा, काव्यप्रकाश, दशरूपक,रुद्रट, शृङ्गारतिलक, सरस्वतीकण्ठाभरणादि अनेक अलङ्कारक विज्ञ । शम्भु,वृत्तरत्नाकर, काव्य तिलक, छन्दोविचिति, भारतीभूषण, कविशेषर प्रभृति अनेक छन्दोग्रन्थ तं कुशल | कादंबरी, चक्रवाल वायस, गद्यमाला, अपूर्व छइ . हर्षचरित, , चम्पू, वासवदत्ता, शालमञ्जरी, कर्पूरमञ्जरी, प्रभृति अपूर्व्वग्रन्थ कृताभ्यास । केवारी, गोहरिया, साकिक, शुद्धमुख, निरपेक्ष, दाता, कवि सातओये भट्टगुण ते सम्पूर्ण ।
स्वामि वर्णाङ्कित पीछा कइ मण्डलि छातीए घर ओले भाट देखअह । तंका पछा केओ विछालि चलल, के ओ पएरेहि, काहुका नालिका छाती धले, काहुका पुत्र, काहुका बहुआरी, कभननो सुतह छाती धरल । जओ बुलाविअ तो मन्द बोलता बलवउ चरि चरि औषध खएले । ओगला सैचानक अइसनि आँखि कएले । ओड़हुलक माला एकहोंक परिइले, मथाये आनक मारि से तन्हिक सिङ्गाल धारले चिरले अछवा.... पेटे वाह वाह बोलइ समथहे । इथ भो नाक साप अइसनाह । कार्तिककल्याण करहल आह, नगारि बिस तीसतें परिवेष्टित भाट देषु"
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org