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उसका माई रणथंभोर पहुँचे तो राजा ने उन्हें भी अच्छी जागीर दी और साथ ही नकद वेतन भी दिया (५१-२)। युद्ध का आरम्म होते ही इन वीरों के पास संदेश पहुँचता :
लहता ग्रास अम्हारइ घणा । हिव अन्तर दाखउ आपणा (७५)
और ये सब नियत स्थान पर आकर एकत्रित हो जाते (देखों ७५-७९,१६६-१७१) इनमें समी राजकुलों के लोग रहते । यह भ्रान्तिमात्र है कि परमारवंशी राजा के अनुयायी परमार और चौहान के चौहान ही होते। रणमल्ल और रतिपाल सूर वंश के थे। हम्मीर के अन्तिम संग्राम में उसका साथ देनेवाले चार राजपूतों में एक टाक, एक परमार, एक चौहान और एक अज्ञातवंशीय राजपूत था।
दूसरी शक्ति धनी महाजनों की थी। युद्ध के आर्थिक साधन इन्हीं के हाथ में थे। इसलिए राजनीति में भी इनका दखल था। हम्मीरायण में महाजनों को हम्मीर के पास पहुँचना और स्पष्ट शब्दों में हम्मीर की नीति को अपरीक्षित और अयुक्त कहना-इसी महाजनी प्रभाव का प्रमाण है। उनका असहयोग उसके पतन का एक मुख्य कारण भी है। जालोर में इसी वर्ग का समर्थन कान्हड़देव के अनेक वर्षीय सफल विरोध की नींव बन सका था।
स्वयं राजा के पांच सौ हाथी और 'सहस एक सइ 'पंच' घोड़े थे और वह सवालख सांभर का प्रभु था ( १९-२०)। अनेक प्रकार के योद्धाओं के और हाथी घोड़ों के तनु-त्राण आदि उसके पास थे उसके कोष्टागारों में धान्य का संग्रह था (२३-२४)। उसके ५०० मन सोना और करोड़ों १ देखें Early Chauhan Dynasties. .
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