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________________ ( ६२ ) उसे भक्त के रूप में देखने के रूपक को अन्त तक निवाहते हुए भाण्डउ ने लिखा है : 'जाजउ' सिर सिर ऊपरि कीयउ, जाणे ईश्वर तिणि पूजीयउ ॥२९५॥ 'वीरमदे' रउ माथउ देठि, बेउ मीर पज्या पग हेठि ॥२९६॥ जाजा का मस्तक हम्मीर के सिर पर था, मानों ईश्वर का उसने अपने सिर से पूजन किया हो। देवलदे सरल स्वभाव की राजपूत कन्या है जो पिता को बचाने के लिए अपना बलिदान देने के लिए उद्यत है। शायद कई अन्य राजपूत कन्याओं ने भी इसी प्रकार कहा हो : देवलदे (इ) कहइ सुणि बाप, मो वड़इ उगारि नि आप, जाणे जणी न हुंती घरे, नान्हीं थकी गई त्या मरे ॥ २३२ ॥ प्रतिनायक अलाउद्दीन का चरित्र खींचने में भी भाण्डउ ने कुछ कौशल से काम लिया है। वह दिग्विजयी है। (८३) उसे यह सह्य नहीं है कि उसका अपमान कर कोई मनुष्य सजा पाये बिना रह जाय (८६-८८) किन्तु वह देश की व्यर्थ लूट पाट के विरुद्ध है ( ११८-११६ ) किन्तु हम्मीर के माट का वह सम्मान करता है। उसमें वह चालाकी और फरेब भी है जिससे एक शत्रु को वश में कर वह दूसरे को नष्ट कर सके। किन्तु वास्तव में वह कृतघ्नता का विरोधी और स्वामिभक्ति का आदर करता है। हम्मीर की मृत्यु होने पर वह स्वयं पैदल रणक्षेत्र में आता है हम्मीर आदि के बारे में पूछ कर उनकी उचित अन्त्य क्रिया करवाता और स्वामिद्रोही रणमल्ल आदि को उचित दण्ड देता है । हम्मीर की मृत्यु से उसे कुछ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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