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मृत्यु हुई तो वैकुण्ठ की प्राप्ति होगी। स्वार्थी महाजन और सुल्तान ऐसे वीर को शरणागतों को समर्पित करने के लिए राजी या विवश न कर सके तो आश्चर्य ही क्या है ? किन्तु इस वीर राजपूत में नौकरों की पूरी पहचान नहीं है, इसीलिए यह अपने प्रधानों से धोखा खाता है। अपनी 'आण' की रक्षा में स्वयं को या प्रजा को भी कष्ट सहना पड़े तो इसकी उसे चिन्ता नहीं है। शत्रु के आगे झुकना तो उसने सीखा ही नहीं :__ मान न मेल्यउ आपणउ, नमी न दीधउकेम ।
नाम हुवउ अविचल मही, चंद सूर दुय जाम ॥३०८॥ हम्मीर महाकाव्य में हम्मीर के चरित में कुछ विकास भी है। अन्तिम युद्ध के दृश्य में अपने भाई के प्रेम के कारण घोड़े से उतर कर लहू-लुहान पैरों से युद्ध में अग्रसर होते हम्मीर का दृश्य हृदयद्रावक है। यहाँ करुण और वीर रसों का एक विचित्र मेल है जो अन्यत्र नहीं मिलता।
दुसरा मुख्य चरित्र महिमासाहि का है। वह अद्वितीय धनुर्धर, . स्वाभिमानी और दृढ़प्रतिज्ञ है, हम्मीर ने उसे माई के रूप में स्वीकार किया है और दोनों इस भ्रातृत्व की भावना का अन्त तक निर्वाह करते हैं। किन्तु हम्मीरायण में महिमासाहि ( मुहम्मदशाह ) के चरित्र की उदात्तता पूर्णतया प्रस्फुटित न हो सकी है। ____ रणमल्ल और रायपाल हम्मीर के कृतघ्न स्वामिद्रोही अमात्य हैं जिन्हें
अन्त में अपनी करणी का फल भोगना पड़ता है। स्वार्थी महाजनों का भी ' 'माण्डउ' ने अच्छा खाका खींचा है। परिजनों में नाल्ह भाट का चरित्र अच्छा बना है । जाजा के विषय में हम ऊपर पर्याप्त लिख चुके हैं । उसका चरित प्रस्तुत करने में 'कवि' ने सफलता प्राप्त की है। हम्मीर को ईश और
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