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(८) गढ़ केवल साढ़े तीन कोस के घेरे में है, पर है सीधे खड़े पहाड़ पर । किले के तीन और प्राकृतिक पहाड़ी खाई और झुरमुट हैं । खाई के उस ओर वैसा ही खड़ा पहाड़ है जैसा किले का । खिंचा है। फिर चौतरफा कुछ नीची जमीन के का परकोटा । इस प्रकार किला कोसों के बीच में फैला हुआ है ।
उस पर परकोटा
बाद तीसरे पहाड़
हम्मीरायण के १२५ वें पद्य 'सतपुड़ा' का नाम है यह वह पर्वतमाला है जिस में से निकल कर बनास दक्षिण प्रवाहिनी बनती और चम्बल नदी से जाकर मिलती है । सतपुड़ा के अद्रिघट्टों को पार करना आसान
न रहा होगा ।
हम्मीरायण का चरित्र-चित्रण
हम्मीरायण में कुछ पात्रों का अच्छा चरित्र चित्रण हुआ है । हमीरदे शरणागत रक्षक ( ३०७ ); 'रण अभंग' ( २९ ) 'अगंजित राव' (२१६ ) और कीर्तिधनी (१४८ ) है । अलाउद्दीन की मांगों को ठुकराते हुए वह सुल्तान के दूत मोहण से कहता है ।
कीरति मोल्हा वरिजि मई, लाछी तुं ले जाह ; डाभ अग्रि जे ऊपडइ, ते न आप पतिसाह “१५३”
जइ हारउ तर हरि सरणि. जइ जीप तउ डाउ,
राउ कह बारहट, निणि, बिहुँ परि मोनई लाइ “१५४"
हम्मीर कीर्ति का प्रेमी है लक्ष्मी का नहीं । बादशाह ने उससे गढ़ मांगा था, वह उसे दर्भाप्र भी देने को तैयार नहीं है, उसे जय और पराजय दोनों में ही लाभ दिखाई पड़ता है, जय में अपनी बात रहेगी, युद्ध में
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