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(४६ ) वीरम, हम्मीर, मीर गाभरू, महिमासाहि और जाजा। हम्मीरमहाकाव्य में हम्मीर के अन्तिम युद्ध में जाजा उसका साथी नहीं है। उसे राज देकर दुर्ग में छोड़ दिया गया है । उसके साथी चार मुगल बन्धु, टाक गङ्गाधर वीरम, क्षेत्रसिंह परमार और सिंह हैं। इस युद्ध में सम्बन्ध हिन्दू-हिन्दू का नहीं, केवल अभिन्न मैत्री और स्वामिभक्ति का है । हम्मीर के सेवक एक एक करके उसे छोड़ गये तो मी मुगल बन्धु अन्त तक उसके साथ रहे। हम्मीरायण के अनुसार महिमासाहि (मूहम्मद शाह) ने युद्ध में प्राण त्याग किया। किन्तु हम्मीर महाकाव्य में उसके मूच्छित होने और सचेतन होने पर अलाउद्दीन से उत्तर प्रत्युत्तर का हम ऊपर उल्लेख कर चुके हैं । हम्मीरमहाकाव्य ही का कथन इसमें ठीक है । तारीखे फिरिश्ता और तबकाते अकबरी ने भी इसके वीरोचित उत्तर का उल्लेख किया है । अलाउद्दीन ने मुहम्मदशाह को घायल पड़े देखा तो कहने लगा, "मैं तुम्हारे घावों की चिकित्सा करवाऊं
और तुम्हें इस आफत से बचा लूं तो तुम मेरे लिए क्या करोगे और इसके बाद तुम्हारा व्यवहार कैसा होगा ?" वीर मुहम्मदशाह ने उत्तर दिया “मैं ठीक हो गया तो तुम्हें मारकर हम्मीरदेव के पुत्र को सिंहासन पर बिठाउंगा, इस उत्तर से क्रुद्ध होकर अलाउद्दीन ने उसे मस्त हस्ती से कुचलवा दिया। किन्तु उसने मुहम्मदशाह को अच्छी तरह दफनाया। स्वामीमक्ति की वह कद्र करता था१२ दूसरों को जैसा काव्यों में लिखा है समुचित सजा मिली। रणमल्ल, रतिपाल और उनके साथियों को मरवा दिया गया। फिरिश्ता के शब्दों में “जो लोग अपने चिरंतन स्वामी को धोखा देते है, वे किसी दूसरे के नहीं हो सकते।"
१ वही पृ० ११४
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