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________________ इम्मीरायण ने एक दूसरे की अच्छी अनुपूर्ति की है और दोनों का ही वर्णन तत्कालीन इतिहासों से समर्थित है। बोरी पर बोरी डालकर मुसल्मान सैनिकों ने एक पाशीब तैयार की। जब यह पाशीब दुर्ग की पश्चिमी बुर्ज की ऊँचाई तक पहुँची, तो उन्होंने उस पर मगरिबियां रखीं और उनसे किले पर बड़े-बड़े मिट्टी के गोले चलाने शुरू किए, चौहानों ने अपनी मगरिबियों के गोलों से पाशीब को नष्ट कर दिया। सुरंग बनाने वाले सिपाहियों को रालयुक्त तेल के प्रयोग से चौहानों ने मार डाला। दोनों ओर की यह झपट कई दिन तक चलती रही। किन्तु हम्मीरायण का उस समय को बारह वर्ष बतलाना अशुद्ध है। चारणी शैली में गढ़ रोध को बारह वर्ष तक पहुँचाना सामान्य-सी बात रही है। अलाउद्दीन ने राजस्थान के अनेक दुर्गों को लिया। प्रायः हर एक गढ़रोध का समय बारह साल है, चाहे वास्तव में बारह महीने से अधिक समय दुर्ग को हस्तगत करने में न लगा हो। दोनों काव्यों में लिखा है कि अन्ततः अलाउद्दीन गढ़रोध से थक गया। यह कथन किसी अंश में मुसल्मानी इतिहासों द्वारा समर्थित है। दिल्ली और अवध में विद्रोह के समाचारों से मुसल्मानी सिपाहियों की हिम्मत टूट रही थी। किन्तु उनके हृदय में सुल्तान का इतना भय था कि किसी को इतना साहस न हुआ कि वह रणथंमोर को छोड़कर चला जाए। __ अलाउद्दीन से बातचीत का वर्णन दोनों काव्यों में है। किन्तु हम्मीरा१. तारीखे फिरोजशाही इ० डी० ३, पृ० १७४-५ २. वही, पृ. १७७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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