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जिन्होंने अलाउद्दीन के प्रसिद्ध सेनापति उलूनखां के छक्के छुड़ा दिएहै थे। हम्मीर शम्भु तो जाजा उसके लिए सिर अर्पण करने के लिए समुद्यत रावण है।' जाजा वह वीर है जो अन्तिम गढ़रोध में अभिषिक्त होकर स्वामी की मृत्यु के बाद भी ढाई दिन तक गढ़ की रक्षा करता है । वह जाति से 'चौहान' है। ___हम्मीरायण ने भी आगे जाकर जाजा के शौर्य की पर्याप्त प्रशंसा की है। उसमें भी एक स्थान पर रणथम्भोर को जलहरी, हम्मीर को शम्भु जाजा को सिर प्रदान करनेवाले भक्त से उपमित किया गया है ( ३०५) किन्तु उसके कुछ कथन हम्मीर महाकाव्य के विरुद्ध पड़ते हैं। वह सर्वत्र प्राहुणे के रूप में वर्णित है। वह देवड़ा भी है जो चौहानों की शाखा विशेष है। देवड़े चौहान हैं; किन्तु उन्हें देवड़ा कहकर ही प्रायः सम्बोधित
और वर्णित किया जाता है। इससे अधिक खटकनेवाली बात यह है कि वह विदेशी के रूप में वर्णित है :
जाजा तुं घरि जाह, तुं परदेसी प्राहुणउ । म्हे रहीया गढ़ मांहि, गढ गाढउ मेल्हां नहीं ॥ २४७ ॥
हम्मीर गढ़ में रहेगा; वह उसकी चीज है, उस द्वारा रक्ष्य है। किन्तु जाजा परदेशी अतिथि है। उसे गढ़ की रक्षा में प्राणोत्सर्ग करने की आवश्यकता नहीं । वह अपने घर जाए तो इसमें कोई दोष नहीं। यही बात सामान्यतः परिवर्तित शब्दों में कवित्त रणथंभोर रै राणे हमीर हठाले रा' में भी वर्तमान है (पृ. ४९, दोहा १-२ )। किन्तु उसका कर्ता कवि मल्ल 'माण्डउ' से एक कदम और आगे बढ़ गया है। उसने जाजा को बड़ १ रावणः शम्भुमानर्च तथा त्वामर्चयाम्यहम् ।
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