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गूजर बना दिया है (पृ. ४४, पद्य २)। इससे अधिक कथा का विकास 'भाट खेम रचित राजा हम्मीरदे कवित्त' में है जिसके अनुसार 'जाजा बड़ गूजर प्राहुणा ( मेहमान ) होकर आया था। उसे राजा हमीर ने अपनी बेटी देवलदे विवाही थी। वह मुकुटबद्ध ही मरा। देवलदे राणी तालाब में डूब कर मर गई' ( देखें 'बात', पृ. ६४)
किन्तु जाजा-विषयक प्राचीन सूचनाओं में तो उसका परदेशित्व आदि कहीं सूचित नहीं होता। प्राकृतपैङ्गलम् के अन्तर्गत जाजा-सम्बन्धी पद्यों में हम्मीर उसका स्वामी है (पृ. ३९, पद्य ३ ), और वह उसका अनुयायी मन्त्रि-वर है' (पृ० ४०, पद्य ४ ) वह प्राहुणा नहीं, हम्मीर का विश्वस्त योद्धा है । 'पुरुष परीक्षा में भी हम्मोर जाजा को चला जाने के लिए कहता है, किन्तु इसका कारण जाजा का विदेशित्व नहीं है ( देखें परिशिष्ट ३, पृ० ५४ )। हम्मीर विषयक प्राचीन प्रबन्धों में विदेशित्व तो महिमासाहि भादि तक ही परिमित है। हम्मीर महाकाव्य में हम्मीर महिमासाहि से कहता है :
प्राणानपि मुमुक्षामो वयमात्मक्षितेः किल । क्षत्रियाणामयं धर्मों न युगान्तेऽपि नश्वरः ॥ १४९ ॥ यूयं वैदेशिकास्तद्वः स्थातुं युक्त न सापदि । यियासा यत्र कुत्रापि व्रत तत्र नयामि यत् ॥ १५१ ॥
१ पुर जज्जला मंतिवर, चलिअ वीर हम्मीर ॥
डा० माताप्रसाद गुप्त 'मल्ल' पाठ को विशेष उपयुक्त समझते हैं । इस पाठ पर हम अन्यत्र विचार करेंगे।
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