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________________ ( ३४ ) भष्टमी शनिवार के दिन अलाउद्दीन की सभा में घुसा, और जिसने यह पूछने हम्मीर काम आया और पर कि यदि में तुम्हें जीवित छोड़ दूं तो तुम मेरे गढ़ टूटा । (२७८-२९४) लिए क्या करोगे, यह उत्तर दिया, 'वही जो तुमने हम्मीर के लिए किया है।' (१४-१-२०) १२. युद्ध के बाद अलाउद्दीन रण- १२. पूछने पर जिसने रणक्षेत्र में क्षेत्र में आया। जब उसने हम्मीर के पड़े हम्मीर के सिर को पैर से दिखाया, विषय में पूछा तो रणमल ने पैर से उसे और पूछने पर राजा से प्राप्त कृपाओं दिखाया । इतने में माट नल्ह ने हम्मीर का भी वर्णन किया, उस रतिपाल की की विरुदावली पढ़ी और बादशाह को अलाउद्दीन ने जो खाल निकलवा डाली सब सिर दिखाए-जाजा का जिसने वह ठीक ही किया। (इससे मानों उसने जलहरी रूपी रणथंभोर में स्थित अपने यह उपदेश दिया कि) कोई स्वामिद्रोह स्वामीरूपी महादेव की अपने सिर से न करे । (१४-२१) पूजा की थी, वीरम का गाभरू और महिमासाहि का और हम्मीर का भी। जब बादशाह ने उसे वर देना चाहा तो उसने यही प्रार्थना की कि स्वामिद्रोही रतिपाल आदि को प्राण-दण्ड दिया जाए और उसके बाद उसकी भी इहलीला समाप्त की जाए। बादशाह ने रायपाल, रणमल, और बनिए की खाल निकलवा कर भाट को प्रसन्न किया। भाट का हनन कर उसने उसकी इच्छा पूर्ति भी की। राजा, मीर आदि की उसने उचित अन्य-क्रिया की । (२९५-३२३) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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