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काव्य कथाओं में सत्यासत्य का विवेचन हम ऊपर हम्मीरायण का सार दे चुके हैं । किन्तु तुलनात्मक दृष्टि से विषय के अध्ययन के लिए कोष्टकों में किसी अंश में उसकी पुनरावृत्ति आवश्यक हुई है। उन्हें देखने से यह स्पष्ट है कि हम्मीरायण और हम्मीरमहाकाव्य की कथाओं में पर्याप्त समानता है। हम्मीरमहाकाव्य के अनुसार हम्मीर की मृत्यु के बाद कवियों ने हम्मीर विषयक अनेक छोटी मोटी रचनाएं की । शायद यही रचनाएं हमारे काव्यों की मूलस्रोत हो । किन्तु यह भी असम्भव नहीं है कि 'भाण्डउ' व्यास ने हम्मीरमहाकाव्य को सुना और उसका कुछ आश्रय भी लिया हो।
विशेषतः कथाओं का अन्तर विवेच्य है। जहाँ दोनों कथाओं में भिन्नता है, उसमें कौन ग्राह्य है और कौन अग्राह्य ? न केवल यह कहना पर्याप्त है कि यह कथा कल्पित प्रतीत होती है, या 'यह अधिक प्रमाणिक है कयोंकि इसमें अधिक विस्तार नहीं है'। और न हम पारस्परिक कथाओं को केवल अन्य कथाओं के मौन के आधार पर ही एकान्ततः तिलांजलि दे सकते हैं । जो बात हमें एक स्थान पर न मिली है वह शायद अन्यत्र मिल सके । समसामयिक आप्त ग्रंथों और अभिलेखों के विरुद्ध जानेवाली परम्परा का हमें अवश्य त्याग करना पड़ता है। किन्तु वहाँ भी आप्तता आवश्यक है । पूर्वाग्रह वहाँ भी हो सकता है । मुसलमान इतिहासकार यदि हिन्दू राजा के विषय में कुछ लिखें या चारण और भाट किसी सुल्तान, अमीर आदि के विषय में तो दोनों के लेखों की कुछ परीक्षा करनी पड़ती है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए हम अभिलेखों, खजाईनुल फुतूह, तारीखे फिरोजसाही, फुतू हुस्सलातीन, तारीखे फरिश्ता आदि तवारीखों
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