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दुर्ग रक्षा का फिर विचार होने लगा। किन्तु हम्मीर ने जब कोठारी से धान्य के बारे में पूछा तो उसने जा कर खाली कोठे दिखा दिए (२४१-२५५)
१०. राजा ने अब १०. वहाँ से लौट कर जब उसने कोष्ठागार को जमहर (जौहर) करने का
देखा तो उसमें उसे अन्न से परिपूर्ण पाया। जाहड़ ने निश्चय किया। वीरमदे से उसने जाने के लिए झूठ बोलने का कारण भी बताया। "तेरी बुद्धि पर कहा; किन्तु वह राजी न बज्र पड़े", कहते हुए राजा ने बाहर जाने के इच्छुक हुआ। तब उसने कुमार नागरिकों के लिए मुक्ति द्वार खोल दिया और बाकी को तिलक दिया, उचित को जौहर की आज्ञा दी। स्वयं दानादि दे और शिक्षा दी, और उसकी मां भगवान् जनार्दन की अर्चना कर वह पद्मसर के किनारे के साथ उसे वहाँ से निकाल दिया। हाथियों
पर बैठ गया। रंगदेवी आदि रानियों ने अपने को और घोड़ों को हम्मीर के सुभूषित किया। राजा ने संतुष्ट हो कर अपनी अनुयायियों ने मार डाला। केशपट्टिका काट कर उन्हें दी। फिर देवलदेवी को घर घर में लोगों ने गले लगा कर वह रो पड़ा। रानियां हम्मीर की जमहर किए। तमाम केशपटिका हृदय पर रख कर अग्नि में प्रवेश कर गई। रणथंभोर ऐसा जला
उन्हें अन्याञ्जलि देकर राजा ने जब जाजा को भेजा मानों हनुमान् ने लंका में अग्नि लगाई हो।
तो वह नौ हाथियों के सिर काट कर राजा के पास
पहुंचा और कहने लगा, जिस प्रकार रावण ने शिव फिर कोठे देखे तो उन्हे की अर्चना की थी, वैसे ही मैं तुम्हारी अर्चना करता धान्य से परिपूर्ण पाया। हूँ। ये नौ सिर है, और दसर्वां सिर मेरा होगा।"
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