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( ३१ ) जाएगा।” संशय रहित की इच्छा से उसने कहा कि अन्न है ही नहीं । राजा ने उन्हें सब सेना
(१३०-१३०-३७) दी। वे बादशाह से जा मिले । गढ़ में कोई ऐसा व्यक्ति न रहा जिसके हाथ में हम्मीर हथियार दे।
(२३४-२४०) . ९. हम्मीर ने शेष
९. इस सार्वत्रिक कृतघ्नता से खिन्न होकर लोगों को बुलाया और कहा, “मैं तुम्हारा ठाकुर
उसने महिमासाहि को बुलाया और कहा, तुम विदेशी हूँ, तुम मेरी प्रजा। कहो हो। तुम्हारा यहाँ रहना उचित नहीं है। जहाँ कहो मैं तुम्हें कहाँ पहुंचाऊँ ?"
मैं तुम्हें पहुँचा दूं। हम तो क्षत्रिय हैं। अपनी किन्तु वे जाने को राजी न हुए। उसने जाजा से जमीन के लिए प्राणों की आहुति देना हमारा तो धर्म कहा, 'जाजा तुम जाओ। है।' इन वचनों से मर्माहत होकर महिमासाहि घर तुम परदेशी पाहुणे हो।'
पहुँचा और स्त्री, बालकादि सब को तलवार की धार कहते इन्कार किया कि उतार कर हम्मीर से कहने लगा, "तुम्हारी भाभी ऐसे समय में वही लोग जाने से पर्व एकबार तम्हारे दर्शन करना चाहती है।" जाएंगे जो ऐसे वैसे व्यक्तियों की सन्तान है। राजा वहाँ पहुँचा और घर के उस वीभत्स दृश्य को दोनों मीरों ने तो यह भी देख कर मूर्छित हो गया। सचेतन होते ही महिमाकहा कि वह उनका
___ साहि के गले लग कर अपने को धिक्कारता हुआ वह समर्पण कर दुर्ग का उद्धार करे। किन्तु हम्मीर इसके विलाप करने लगा। .
(१३८-१६६) लिए तैयार न हुआ।
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