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देवलदे को मांगता है। भी छीन लँगा। इस पर मैं उसे भर्त्सना दे कर मैं देवलदे ने कहा, "मुझे चला आयो हूँ। रणमल्ल आप से नाराज है। इसलिए देकर तुम अपने को
पाँच सात आदमी ले जा कर आप उसे राजी कर बचाओ। समझ लेना कि मैं पैदा ही नहीं हुई, या
लें।" जब बीरम के पास हो कर रतिपाल निकला छोटी अवस्था में ही मर तो शराब की गंध से उसने अनुमान कर लिया कि गई। किन्तु इम्मीर ने रतिपाल शत्रु से मिल गया है। किन्तु राजा ने इस बात पर ध्यान न रतिपाल के विरुद्ध कार्य करना उचित न समझा। दिया। (२३१-२३३)
उधर रानियों के कहने से देवलदेवी पिता के पास पहुँची और अनेक नीतियुत वाक्यों से उसे अपने प्रदान के लिए समझाया। किन्तु इससे प्रसन्न होने के स्थान पर हम्मीर अत्यन्त क्रुद्ध हुआ। उसने पुत्री की बातों का समाधान कर उसे वापस अपने स्थान पर
भेज दिया। (१३-८४-१२९) ८. कोठारी से मिल
८. उधर रतिपाल ने रणमल्ल के पास जाकर कर उन्होंने सब धान दूर कहा, माई ! यहाँ से भागो। राजा तुम्हें पकड़ने आ गिरवा दिया। उससे रहा है। तुम्हें अभी विश्वास न हो तो सायंकाल के कहा, हमें पूरी बूंदी मिली
समय जब वह पाँच सात आदमियों के साथ आए तो है हम तुझे प्रधान बनाएंगे। फिर रिणमल मेरा वचन सत्य मान लेना।" राजा को उसी तरह और रउपाल ने हम्मीर से आता देख रणमल्ल गढ़ से उतर कर शत्रु से जा सेना मांगी। उन्होंने कहा,
को मिला। उनकी दुश्चेष्टा से खिन्न होकर जब राजा कि शत्रु कमजोर · पड़ ने कोठारी जाहड से अन्न के बारे में पूछा तो सन्धि
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