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महिमासाहि और हम्मीर तरह पराजित हुई और उल्लूखान जान लेकर भागा। के राजपूतों ने मुसलमानी रतिपाल ने बन्दी मुसल्मानी स्त्रियों से गांव-गांव में सैन्य को रौंद डाला और निसरखान को मार
छाछ निकवाई। राजा ने रतिपाल को खूब पुरस्कृत डाला। (८४-१७३) किया (१०-१-६३)
४ अब सब प्रान्तों इसी समय हम्मीर से आज्ञा प्राप्त कर महिमासाहि और देशों की फौज लेकर अलाउद्दीन ने आक्रमण
आदि ने भोज की जागीर पर आक्रमण किया किया। हम्मीर ने भी और उसके भाई को सकुटुम्ब पकड़ कर ले आए। इस अवसर पर छत्तीस एक तर्फ से रोता धोता मोजदेव और दूसरी ओर से कुलके राजपूतों को पराजित उल्लूखान अलाउद्दीन के दरबार में पहुँचा। बुलाया। युद्ध आरम्भ अलाउद्दीन ने हम्मीर का समूल उच्छेद करने का हुआ, बादशाह उसे एक
निश्चय किया और राज्य के प्रत्येक प्रान्त से सेनाएँ ओर खड़ा देखता। बादशाही सेना हारी। बहुत
मंगाई (१०-६४-८८) सुल्तान के माई उल्लूखान और से मीर और मलिक मारे . निसुरत्तखान ने हम्मीर को पराजित करने के लिए गए। खबर लेने पर प्रयाण किया। दरों को पार करना कठिन था इसलिए मालूम हुआ कि सवा दोनों भाइयों ने सन्धि-मन्त्रणा के बहाने मोल्हण लाख आदमी समाप्त
को हम्मीर के पास भेजा, और छल से दर्रे में प्रवेश हुए हैं। (१७४-१९२)
कर मुण्डी, प्रतौली और श्री मण्डपदुर्ग एवं जैत्रसर आदि के चारों ओर अपनी सेना के पड़ाव डाल दिए (११-१-२४)
__ मोल्हण यथा तथा दरबार में पहुँचा, और उसने हम्मीर से लाख स्वर्णमुद्राओं चार हाथियों, तीन सौ घोड़ों और राजकन्या की मांग की। विशेषतः
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