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रणथम्भोर में दी। उधर सिपाही एकत्रित हो गए। भीमसिंह वीरता से युद्ध अल्लूखान बढ़कर हीरापुर करता हुभा मारा गया। घाट पर जा उतरा। व्रत के पूरा होने पर हम्मीर ने धर्मसिंह को हम्मीरदे ने महिमासाहि नपुंसक, अंधा आदि कहते हुए उसे वास्तव में शरीर
और अनेक क्षत्रियों की से अन्धा और नपुंसक बना दिया। धर्मसिंह का पद सेना के साथ अलखान उसने खांडाधर मोज को दिया। किन्तु कुछ दिन पर आक्रमण किया। बाद धन की आवश्यकता पड़ने पर उसने अंधे धर्मसिंह अलखान पराजित होकर को फिर अपने पुराने पद पर नियुक्त कर दिया। भागा और बादशाह तक प्रजा को अनेक करों से पीड़ित कर उसने राजा के पुकार हुई। (६७-८३) विरुद्ध कर दिया। भोज को भी राजा और धर्मसिंह
ने इतना तंग किया कि वह और उसका भाई पीथसिंह यात्रा के बहाने दिल्ली जाकर अलाउद्दीन के नौकर हो गए। भोज के चले जाने पर हम्मीर ने दण्ड
नायक का पद रतिपाल को दिया (सर्ग ९,१०६-१८८) ३. अल्लाउद्दीन ने ३. भोज की सलाह से अलाउद्दीन की सेना ने क्रुद्ध होकर बहुत बड़ी फसल कटने से पहले रणथंभोर पर आक्रमण किया। सेना एकत्रित की और उल्लूखान जब हिन्दूवाट पहुंचा तो हम्मीर के रणथंभोर को जा घेरा। सेनानियों ने आठ ओर से उस पर आक्रमण किया, मोल्हउ भाट के मुख से पूर्व से वीरम ने, पश्चिम से महिमासाहि ने, जाजदेव की हुई देवलदेवी, गढ़, ने दक्षिण से, उत्तर से गर्भरुक ने, आग्नेय दिशा से हाथी आदि की मांग रतिपाल ने, वायव्य से तिचर ने, ईशान से रणमल्ल हम्मीर ने ठुकरा दी। ने और नैर्ऋत से वैचर ने। मुसल्मानी सेना बुरी
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